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गुलाब नहीं किताब
अनंत विजय ,
Feb 16, 2015, 15:54 pm IST
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![]() अंग्रेजी के प्रकाशकों के बरक्श अब हिंदी के भी बड़े प्रकाशकों ने भी योजनाबद्ध तरीके से पुस्तक मेले में पुस्तकों का प्रकाशन शुरू कर दिया है । विश्व पुस्तक मेले में हिंदी के प्रकाशको के स्टॉल को देखकर संतोष होने लगा है । वहां उनके स्टॉल की साज सज्जा और व्यवस्था देखकर वर्ल्ड क्लास होने का एहसास होता है । दूसरे अब पुस्तक मेले में विमोचनों की होड़ तो रहती है लेकिन इन कार्यक्रमों को अब व्यवस्थित कर दिया गया है । इसके लिए अलग से जगह नियत कर दी गई है । विश्व पुस्तक मेले की आयोजन नेशनल बुक ट्रस्ट ने साहित्य मंच बनाकर हर दिन कई घंटे तक विमर्श और साहित्यक चर्चा के लिए मंच भी मुहैया करवा दिया है । इस बार भी पुस्तक मेले में सैकड़ों किताबें रिलीज हो रही हैं । इन दिनों फेसबुक पर इन साहित्यक कार्यक्रमों की जानकारी की बाढ आई हुई है । हर तरह के लेखकों की किताबें रिलीज हो रही हैं और तो और एक प्रकाशक ने तो फेसबुक पर प्रकाशित कविताओं का एक संग्रह ही प्रकाशित कर दिया है । इस संग्रह में फेसबुक पर सक्रिय सौ कवियों की कविताओं हैं । हर तरह के आयोजन में कवि और कविता सबसे ज्यादा जगह छेक लेते हैं । कविता है ही ऐसी विधा जो कम स्थान में समाती ही नहीं । इस बार पुस्तक मेले में कई युवा लेखकों की किताबों के अलावा कुछ आत्मकथाएं भी प्रकाशित हो रही हैं जिसका हिंदी के पाठकों को इंतजार था । जैसे वाणी प्रकाशन से पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह और सिने सुपर स्टार दिलीप कुमार की आत्मकथा भी प्रकाश्य है । इसी तरह से प्रभात प्रकाशन से पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम मेरी जीवन यात्रा प्रकाशित हो रही है । इस बार भी पुस्तक मेले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को केंद्र में रखकर कई किताबें प्रकाशित हो रही है । इस बार पुस्तक मेले में वाणी प्रकाशन एक बेहद नई पहल कर रहा है । वेलेंटाइन डे पर लाल गुलाब देने की वर्षों पुरानी परंपरा से मुठभेड़ करते हुए हे बसंत नाम से एक ऑन लाइन रोमांस फेस्टिवल शुरू हो रहा है । इसका टैग लाइव है वैलेंटाइन पर गुलाब नहीं किताब । यह एक बेहतरीन पहल है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। अगर उपहार में किताब देने की परंपरा शुरू हो गई तो हिंदी समाज में घट रही पुस्तक संस्कृति को एक जीवनदान मिलेगा । पाठकों को किताबों को ओर लाने में सफलता मिल सकेगी । अगर इस योजना को जनता ने स्वीकार कर लिया तो किताबों के जो संस्करण घटते-घटते तीन सौ तक आ गए हैं उसको बढ़ाने में भी मदद मिलेगी । लेकिन यह काम एक दो महीनों का नहीं है इस आंदोलन को महीनों नहीं सालों तक लगातार चलाते रहने की आवश्यकता है । अगर ऐसा हो सकता है तो हम अपनी आनेवाली पीढ़ी को एक बेहतर समाज दे सकेंगे जहां पुस्तकों का एक अहम स्थान होगा।
अनंत विजय
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