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'मीडिया' पुलिस के लिए है 6 दिसंबर, अयोध्यावासियों के लिए नहीं'
जनता जनार्दन डेस्क ,
Dec 06, 2014, 16:37 pm IST
Keywords: अयोध्या छह दिसंबर 1992 बाबरी मस्जिद विध्वंस बरसी Ayodhya Six December 1992 Babri Masjid demolition anniversary
![]() बातचीत के दौरान लोग हालांकि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले के मुद्दई हाशिम अंसारी के उस बयान की तारीफ जरूर कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने मुकदमे की पैरवी न करने की बात कही थी। उनके बयान को लेकर अयोध्या में हिन्दू और मुसलमान दोनों समुदायों के बीच एक सकारात्मक संदेश गया है और इसकी तारीफ सभी लोग कर रहे हैं। अयोध्या के लोगों का तो यहां तक कहना है कि छह दिसंबर मीडिया और पुलिस के लिए खास दिन होगा, उनके लिए नहीं हैं। हनुमानगढ़ी के संत सुखराम दास महाराज की नजर में भी दूसरे कई लोगों की तरह ही छह दिसंबर विशेष मायने नहीं रखता। उन्होंने कहा, “अयोध्या का सूरते हाल जानने के लिए मीडिया छह दिसंबर को ही क्यों आती है? यदि जानना ही है, तो उसे हमेशा आना चाहिए। यहां के लोग अमन-चैन से पहले भी रहते थे और अब भी रह रहे हैं। छह दिसंबर का हौव्वा बनाया जाता है।” उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि छह दिसंबर को कुछ अलग होता है। वही सुबह, वही शाम और मंदिरों में रोज की तरह पूजा अर्चना, मस्जिदों में अजान होती है। यह दिन खास मीडिया और पुलिस के लिए होता है, यहां के लोगों के लिए नहीं। चाय की दुकान चलाने वाले फरहान अहमद ने कहा कि छह दिसंबर का कोई मतलब नहीं है। यहां सब खुशहाली से रह रहे हैं। लोग अपने धंधे पानी में व्यस्त हैं। यहां मंदिर और मस्जिद के नाम पर कोई अपना समय गवांना नहीं चाहता। अयोध्या के ही स्थानीय पत्रकार पवन पांडेय भी मानते हैं कि छह दिसंबर को पुलिस की चहलकदमी और मुश्तैदी ज्यादा दिखती है, लेकिन इससे आम अयोध्यावासियों का कोई लेना देना नहीं है। उनकी जीवनशैली तो हर रोज की तरह ही होती है। उन्होंने कहा, ” पिछले कई सालों से यही सब चला आ रहा है। आम लोगों को इससे कोई लेना देना नहीं। वे तो अपनी रोजी रोटी में व्यस्त होते हैं।” सरयू तट पर खिलौने की दुकान लगाने वाले हरिशंकर पटेल भी कहते हैं कि अयोध्या की जनता अब अमन चैन से रहना चाहती है। मंदिर बनने की इच्छा है। हाशिम चाचा के बयान के बाद लगता है कि अब मामला जल्दी सुलझ जाएगा। अयोध्या की शीर्ष पैगम्बर मस्जिद के मौलवी हाजी परवेज याकूब भी कहते हैं कि मंदिर और मस्जिद में दिमाग खपाने से अच्छा है कि बच्चों को अच्छी तालीम मिले। इसके लिए अच्छे स्कूलों की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए। दोनों समुदायों के लोगों को मंदिर-मस्जिद से आगे की सोचने की जरूरत है। |
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