नैतिकता के पैमाने से टीओआई और दीपिका दोनों ही बाहर
बी.पी. गौतम ,
Sep 23, 2014, 17:47 pm IST
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नई दिल्ली: टाइम्स ऑफ इंडिया के ऑनलाइन एंटरटेनमेंट सेक्शन पर डाले गए वीडियो और ट्वीट पर अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की आपत्ति के बाद उपजा विवाद अभी थमा नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया बचाव में अपने तर्क दे रहा है और दीपिका
पादुकोण अपने तर्क पर अडिग हैं। ग्लैमर की दृष्टि से टाइम्स ऑफ इंडिया सही नजर आ रहा है और एक स्त्री के नजरिये से अभिनेत्री दीपिका पादुकोण सही नजर आ रही है, लेकिन नैतिकता के मापदंड पर दोनों ही खरे उतरते नजर नहीं आ रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया और अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के विवाद की बात करने से पहले जया बच्चन की बात करते हैं। पिछले दिनों हुए एक इवेंट में एक फोटो जर्नलिस्ट ने ऐश्वर्या राय से यह कह दिया कि ऐश्वर्या एक पोज दे दीजिए, इस पर जया बच्चन भड़क ही नहीं गईं, बल्कि यह तक कह दिया कि क्या ऐश्वर्या-ऐश्वर्या बुला रहे हो, तुम्हारी क्लास में पढ़ती थी क्या?, इसी तरह एक बार ऐश्वर्या राय को ऐश बुलाने पर उनके पति अभिषेक बच्चन ने भी नाराजगी जाहिर करते हुए कह दिया था कि ऐश नहीं, ऐश्वर्या है नाम, जबकि ऐश्वर्य राय, उनके पति अभिषेक बच्चन और ससुर अमिताभ बच्चन साथ फिल्म कर चुके हैं और कजरारे-कजरारे जैसा सुपर हिट गाना देकर लाखों लोगों की सीटियाँ बटोर चुके हैं। उस गाने पर सीटियाँ बजते समय अच्छा लग रहा था, क्योंकि टीआरपी बढ़ रही थी, जिससे पैसा मिलता है और जब काम निकल गया, तब अचानक यह आशा करने लगे कि लोग अब वो सब ध्यान में भी न लायें। इसी तरह पिछले साल अभिनेत्री कैट्रीना कैफ और अभिनेता रणबीर कपूर के कुछ निजी फोटो किसी तरह लीक हो गये थे, तब दीपिका पादुकोण ने कहा था कि एक पब्लिक फिगर होने के नाते कैट को खुद सावधान रहना चाहिए था। इसके बाद एक फिल्म के प्रमोशन इवेंट में कैट्रीना ने फोटोग्राफर्स से निवेदन किया कि वे जब तक कुर्सी पर बैठें, तब तक उनकी कोई फोटो न क्लिक की जाये। कैट्रीना की भावनाओं को फोटोग्राफर्स ने समझा और उनके तब तक फोटो न खींचें, जब तक कैट्रीना स्वयं फोटो देने को तैयार नहीं हो गईं। अब बात करते हैं टाइम्स ऑफ इंडिया और अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के विवाद की, तो सबसे पहले तो टाइम्स ऑफ इंडिया ने निःसंदेह गलत किया। साइट पर लोगों को खींचने के लिए इस तरह की हरकतें इतने बड़े मीडिया समूह को तो बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए। गोला और तीर बनाना किसी भी तरह सही नहीं ठहराया जा सकता। दीपिका की आपत्ति टाइम्स ऑफ इंडिया के प्रति सही भी है, लेकिन वह स्वयं को जिस तरह पेश कर रही हैं, वो उनकी ओर से अति कही जा सकती है, क्योंकि व्यक्ति के तौर पर दीपिका ऐसी शख्सियत नहीं हैं, जिसे लोग चरित्रवान के तौर पर आदर्श मानें। पब्लिक डोमेन में उनके ऐसे-ऐसे फोटो और ऐसे-ऐसे किस्से मौजूद हैं, जिन्हें भारतीय समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता। उनके वे फोटो परिवार के लोग साथ बैठ कर नहीं देख सकते। कानूनी दृष्टि से वे बालिग हैं, स्वतंत्र हैं, कलाकार हैं, लेकिन बात नैतिकता की होगी, तो वे भी पूरी तरह खरी उतरती नजर नहीं आ रही हैं। दीपिका ने फेसबुक पर लिखा कि “करैक्टर की डिमांड होती है कि मुझे सिर से लेकर पैर तक ढके रहना है या पूरी तरह नग्न होना है। ऐसा करना या न करना मेरी च्वाइस पर निर्भर करता है। समझिए कि यह “रोल” है न कि “रीयल”। और यह मेरा काम है कि जो रोल मैंने चुना है, उसे मैं पूरी तरह से निभाऊं।”, इस पर टाइम्स ऑफ इंडिया ने जवाब दिया है कि “दीपिका, हम आपके “रील” बनाम “रीयल” के तर्क को स्वीकार करते हैं, लेकिन उसका क्या, जब आपने कई बार स्टेज पर नाचते हुए, मैगजीन कवर्स के लिए पोज करते हुए या मूवीज के प्रमोशनल फंक्शंस पर फोटो शूट करवाते हुए ऑफ स्क्रीन अंग प्रदर्शन किया है?, उस वक्त आप क्या “रोल” निभा रही होती हैं? यह पाखंड क्यों? टाइम्स ऑफ इंडिया ने सवाल सही किया है, इसी तरह सवाल यह है कि दीपिका और उन जैसी तमाम अभिनेत्रियाँ ऐसे रोल करती ही क्यूं हैं, जिनमें एक सीमा से अधिक शरीर से कपड़े हटाने पड़ते हैं? टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने बचाव में यह भी लिखा है कि ऑन लाइन वर्ल्ड अखबारों से बहुत अलग है और यहां पर सनसनीखेज हेडलाइन्स बड़ी सामान्य सी बात हैं, तो सवाल यह उठता है कि इस सामान्य सी बीमारी की गिरफ्त में टाइम्स ऑफ इंडिया क्यूं आया? टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह सवाल भी अच्छा किया है कि इवेंट्स में ली गईं तस्वीरों को पहले उन्हें दिखाया जाये और फिर छापा जाये क्या? जाहिर है कि यह संभव ही नहीं है, इसका एक ही समाधान है कि दीपिका सहित तमाम अन्य अभिनेत्रियाँ रील और रीयल लाइफ में ऐसे कपड़े पहनें, जिनके फोटो देखते समय वे स्वयं असहज महसूस न करें। फिल्म कैरियर शुरू करने वाले तमाम अभिनेता व अभिनेत्री अच्छे अखबारों और मैगजीन में अपनी स्टोरी और फोटो प्रकाशित कराने के लिए सैटिंग करते नजर आते हैं। आज कल तो खबर प्लांट करने वाली एजेंसी भी हैं, जो तमाम तरह की कहानियाँ गढ़ कर टीआरपी दिलाती हैं। दीपिका की ही बात करें, तो उन्होंने भी शराब के एक ब्रैंड के लिए 'कैलेंडर गर्ल' के रूप में अपने कैरियर का शुभारंभ किया था। अब अचानक उनमें स्त्री भाव उत्पन्न हो गया और स्त्री की गरिमा से पूरे प्रकरण को जोड़ने लगी हैं, तो ऐसा थोड़े ही होता है। समाज किसी के बारे में ऐसे ही कोई सोच नहीं बना लेता। हाव-भाव, चाल-ढाल ही नहीं, बल्कि संपूर्ण व्यक्तित्व से इमेज बनती है और उनकी इमेज एक आदर्श स्त्री वाली नहीं, बल्कि सेक्सी हिरोइन वाली है, जिसके बारे में अन्य तमाम तरह के किस्से भी अखबारों और मैगजीन में आये दिन छपते रहते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया का दीपिका के फोटो पर गोला और तीर बनाना गलत है, लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया भी सानिया मिर्जा के फोटो के साथ ऐसी हरकत नहीं कर सकता। क्यूं नहीं कर सकता?, यह दीपिका सहित अन्य तमाम अभिनेत्रियों के लिए आत्म मंथन का विषय हो सकता है। यह विवाद आज नहीं, तो कल थम जायेगा, लेकिन इस विवाद से एक सकारात्मक बात निकली है कि फिल्म लाइन से जुड़े लोग इस बिंदु पर एक बार सोचें कि वे टीन एजर्स के साथ संपूर्ण समाज को क्या दे रहे हैं? |
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