कश्मीरियों के ही विरुद्ध है धारा 370
बी.पी. गौतम ,
May 28, 2014, 17:16 pm IST
Keywords: भारतीय जनता पार्टी एनडीए सरकार कश्मीर और अनुच्छेद 370 राष्ट्रवादी और अलगाववादी BJP NDA Government Kashmir and Article 370 Nationalist and Separatist
नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार के अस्तित्व में आते ही कश्मीर और अनुच्छेद 370 पर बहस शुरू हो गई है। इस मुददे पर जैसी प्रतिक्रिया की आशा की जाती रही है, दोनों ही पक्षों से वैसी ही प्रतिक्रियायें आनी शुरू हो गई हैं, लेकिन प्रतिक्रियायें राष्ट्रवादी और अलगाववादी के रूप में देखी जा रही हैं। सामान्यतः अधिकाँश लोगों को कश्मीर के इतिहास और उसके भारत के साथ बने संबंध को लेकर बहुत अधिक जानकारी नहीं है। यूं तो कश्मीर भारत का अंग प्राचीन काल से ही है। नाम और सीमायें समय-समय पर परिवर्तित होती रही हैं। कश्मीर का उल्लेख दंत कथाओं, ग्रंथों और शास्त्रों में भी है, इसलिए आज़ादी के बाद की ही बात करते हैं। भारत का विभाजन होने के बाद जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह और पाकिस्तान के बीच एक स्टैंडस्टिल ऐग्रीमेंट हुआ था, जिसे तोड़ते हुए पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर 1947 को घाटी पर आक्रमण कर दिया। एग्रीमेंट तोड़ने से नाराज महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को पूरे जम्मू-कश्मीर का भारत में बिना शर्त विलय कर दिया। विलय के बाद भारत की सेना ने पाकिस्तानी सेना को रौंदना शुरू कर दिया, लेकिन उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा कर दी और विवाद यूएनओ की सुरक्षा परिषद में भेज दिया, जिससे भारत या कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में ही रह गया और वह आज तक पाकिस्तान के ही कब्जे में है, जिसे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के रूप में जाना जाता है, जबकि विलय के अनुसार वह हिस्सा भी भारत का ही अंग है, पर उस हिस्से पर कब्जा छोड़ने की बजाये, पाकिस्तान उस हिस्से को भारत के विरुद्ध शुरू से ही इस्तेमाल करता आ रहा है। वहां शुरू से ही आतंकवादियों को ट्रेंड करने के कैंप चलाए जा रहे हैं, जिससे वह हिस्सा भारत विरोधी गतिविधियों का केंद्र बन कर रह गया है। आजादी के बाद भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 के तहत तमाम रियासतों का विलय हुआ था, उन्हीं में से एक जम्मू-कश्मीर भी है। इस अधिनियम के अंतर्गत विलय होने के पश्चात आपत्ति करने का अधिकार रियासतदारों के साथ निवासियों को भी नहीं होता है, साथ ही वर्ष 1951 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का निर्वाचन हुआ, तो उसने भी 6 फरवरी 1954 को विलय की पुष्टि कर दी थी, लेकिन अन्य रियासतों और कश्मीर की रियासत में एक बड़ा अंतर है। अब बात विवादित बिन्दुओं की करें, तो जम्मू-कश्मीर की सरकार संघ सूची के तहत बने कानूनों को कश्मीर में लागू करने के लिए बाध्य नहीं है। कश्मीर के मुख्यमंत्री को वजीर-ए-आजम व राज्यपाल को सदर-ए-रियासत कहा जाता है, जिससे प्रतीत होता है कि वह अलग राष्ट्र है। भारत सरकार किसी भी स्थिति में कश्मीर सरकार के विरुद्ध धारा 356 की कार्रवाई नहीं कर सकती। भारत के राष्ट्रपति के पास भी कश्मीर के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है। शहरी भूमि क़ानून (1976) कश्मीर में लागू नहीं होता। भारत के किसी अन्य राज्य के निवासी कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते हैं। वित्तीय आपातकाल लगाने की धारा 360 भी कश्मीर में नहीं लगाई जा सकती। कश्मीर में लागू धारा 370 के कारण भारतीय संसद कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश और संचार से संबंधित विषयों पर ही कानून बना सकती है, ऐसे में धारा 370 पर बहस छेड़ने के साथ ही कश्मीरी और भारतीयों को खुल कर समझाना होगा कि धारा 370 के हटने से कश्मीरियों और भारतीयों को क्या लाभ और क्या हानि हो सकती है। कश्मीरियों की बात करें, तो धारा 370 के चलते वहां महिलाओं और अल्पसंख्यकों की सामाजिक स्थिति बेहद खराब है। विकास की दृष्टि से भारत के अन्य राज्यों की तुलना में कश्मीर बहुत पीछे है। प्रत्येक कश्मीरी के मूल अधिकार बहुत ही सीमित हैं। निवेश शून्य होने जैसी स्थिति के चलते रोजगार के अवसर भी शून्य जैसे ही हैं, इसीलिए अधिकाँश लोग रोजी-रोटी के लिए परंपरागत कार्यों पर ही निर्भर हैं। |
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