भारत के भविष्य का नया चेहरा
राधेश्याम तिवारी ,
May 18, 2014, 15:46 pm IST
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नई दिल्ली: आज से ग्यारह वर्ष पूर्व 3 मार्च के 2003 के न्यूज वीक में प्रकाशित कवर पेज पर मादी को प्रोफाइल और प्रोफाइल उस के नीचे लिखा ‘कैप्शन’ अभी तक याद है, जिसमें लिखा था द फेस आफ इंडियाज फ्यूचर और 2014 के इस चुनाव में उसकी भविष्यवाणी बिल्कुल सच हो गई। आज सचमुच मोदी भारत के नए भविष्य का चेहरा के रुप में प्रतिष्ठित हो गए ।
इस चुनाव में जिस प्रकार सभी भाजपा विरोधी पार्टियों ने सामप्रदायिकता और गोधरा कांड को लेकर अनावश्यक रुप से एक अकेले नरेन्द्र मोदी पर हमला करते रहे थे वह चरमावस्था से भी उपर चला गया था। इसलिए मुझे इस चुनाव 2014 में मोदी की भूमिका हालीवुड की फिल्म रेम्बो और इसके नायक की भूमिका में सिलवेस्टर स्टेलोन की याद आती रही कि किस तरह वह वन मैन आर्मी की तरह दुष्मनों की साजिश और ठिकाने को ध्वस्त करता हुआ अंत में विजयी हो जाता है। पिछले दो दशको से यह साफ दिख रहा था कि गोधरा कांड को लेकर जिस तरह से भाजपा विरोधी दलों ने मोदी के प्रशासकीय व्यक्तित्व और गुजरात में किए गए विकास के प्रयासें को लेकर कुतार्किक हमले करती जा रही थी और कांग्रेस को समथर्न देनेवाली तमात सहयोगी पार्टियां अकेले मोदी पर मिसाइल पर मिसाइल दागती रहती थी वह एक हद के बाद उनको ही नुकसान करने लगा। और मोदी को वन मैन आर्मी की छवि को लोगों तक पहुचाने का अवसर दे दिया। और प्रजातांत्रिक देश में राजनीति के मैदान में रैम्बो का रुप धारण करने पर मजबूर कर दिया। इसका परिणाम था कि उन्हें पूरी तरह पूरी तैयारी के साथ चुनावी मैदान में अकेले दम पर कूदना पड़ा। इसमें सभी एक मत हैं कि मोदी के नेत्त्तव में बीजेपी ने अपनी जीत का ऐतिहासिक अध्याय लिखा है और बीजेपी नेताओं को यह अधिकार दे दिया है कि अपनी पसंद के किसी भी प्रकार के कानून बना कर व्यवस्था को चला सकते हैं। यदि इस जीत से यह मान लें कि गांव और शहर की सारी जनता यकायक शिक्षित हो गई है या उनको राजनीति की शिक्षा मिल गई है, इस को नही माना जा सकता क्योंकि जातिवाद और धर्म अब लगभग हर शिक्षित की नसों मे खून के साथ शामिल हो गया है ईमानदारी की इस प्रकार की सोच वाले नागरिको की कमी हो गई है। इसलिए यदि मोदी की इस महान जीत से यह उम्मीद करें कि जीत मात्र से ही इस देश के सामाजिक जीवन और प्रशासनिक क्षेत्र में बहता भ्रष्टाचार का मवाद अपने आप सूख जाएगा असंभव है। फिर भी इस चुनाव में यदि मोदी को इतने भारी समर्थन में वोट मिला है तो निष्चित रुप से मतदाताओं को उनसे ढेर सारी उम्मीदें हैं जो कांग्रेस से खत्म हो गई थी। ऐसी बात नहीं है कि भारतीय मतदाताओं ने पहली बार ऐसे आष्चर्यजनक काम किया हैं। जिस जनता ने 1976 में आपातकालीन व्यवस्था के खिलाफ वोट देकर कांग्रेस पार्टी को सूपडा़ इसी प्रकार साफ कर दिया था उसी जनता ने दो वर्ष बाद ही जनता पार्टी के शासन के खिलाफ अप्रत्याशित बहुमत से इंदिरा गांधी के नेतृत्ववाली सरकार को भारी बहुमत से दोबारा सत्ता सौंप दिया।
इसलिए ऐसी जनता जो किसी भावना के साथ बह कर वोट देती है उसका ज्वार जल्दी ही उतर जाता है। यह ज्वार की विशेषता है कि जिस गति से ज्वार उठता है उसी गति से वापस आता है, यह प्रकृति का नियम है। इसलिए इस ज्वार की मूल भावना को गिरने से बचाने की कोशिश अब नरेन्द्र मोदी सहित बीजेपी को करनी होगी। इसमें भी एक मत है कि कांग्रेस के कुशासन ने पिछले दस वर्षों में भारतीय राजनीतिक जलवायु में इस प्रकार के ज्वार को उत्पन्न करने में बहुत बड़ा यागेदान दिया। या दूसरे शब्दों में यह कहें कि महंगाई हर कदम पर भ्रष्टाचार, सामाजिक जीवन और निजी जीवन में बढ़ता असुरक्षा का माहौल, और रोज रोज असुविधाओं से असामान्य होते जा रहे जीवन की बढ़ती कठिनाइयों के कारण जनता काफी गुस्से में थी। देश में इन असामान्य स्थितियों से बचने का एक ही रास्ता था जिस पर चल कर जनता ने यह सामूहिक रुप से, धर्म जाति की सीमाओं से उपर उट कर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने का मन बना लिया। जब जंगल में आग लगती है तो बचाव के लिए हिरण और शेऱ सभी वन्य जीव अपना गुण दोष भूल कर एक साथ एक ही तरफ भागते है लेकिन इसका अर्थ कदापि नही लगाना चाहिए कि जानवरों ने अपनी प्रकृति बदल दी है। मुलायम सिंह के परिवार के सभी सदस्यों की जीत भी यह साबित करती है कि प्रदेश से जातिवाद औद संप्रदाय की सोच अभी खत्म नहीं हुई है। इसलिए भाजपा सरकार को प्रारंभिक दिनो में ही प्रशासन में कुछ होता हुआ दिखाने की प्राथमिकता होनी चाहिए जिससे लगे कि जनता ने सही पार्टी को वोट देकर गलती नहीं की हैं ।
राधेश्याम तिवारी
लेखक राधेश्याम तिवारी हिन्दी व अग्रेज़ी के वरिष्ठतम स्तंभकार, पत्रकार व संपादकों में से एक हैं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख निरंतर प्रकाशित होते रहते हैं। फेस एन फैक्ट्स के आप स्थाई स्तंभकार हैं।
ये लेख उन्होंने अपने जीवनकाल में हमारे लिए लिखे थे. दुर्भाग्य से वह साल २०१७ में असमय हमारे बीच से चल बसे
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