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आप की दुविधा और शेर की सवारी

आप की दुविधा और शेर की सवारी दिल्ली में फिलहाल सरकार नहीं बनेगी। बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है फिर भी उसने सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया। 'आप' दूसरे नंबर की पार्टी है। कांग्रेस के आठ विधायक उसकी मदद को तैयार हैं। 'आप' को उपराज्यपाल ने बुलाया भी पर उसने बजाय सरकार बनाने के नया पेच फंसा दिया। 'आप' ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को चिट्ठी लिखकर अठारह मुद्दों पर राय मांगी है यानी मेरे मुद्दों पर सहमति हो तो फिर आगे की बात की जाए। ये एक खूबसूरत बहाना है।

आम आदमी पार्टी किसी भी हालत में कांग्रेस पार्टी या फिर बीजेपी की मदद से सरकार बनाते हुए नहीं दिख सकती। ये आत्महत्या होगी। दिक्कत ये है कि बिना शर्त समर्थन मिलने के बाद अगर वो सरकार बनाने की कोशिश नहीं करती तो आरोप ये होगा कि वो जिम्मेदार पार्टी नहीं है और बिना किसी कारण के दिल्लीवालों के सिर दुबारा चुनाव मढ़ रही है। ऐसे में सरकार बनाने की कोशिश करते हुए दिखना ज्यादा जरूरी है।

परंपरागत राजनीति में कोई किसी के लिए अछूत नहीं होता। खासतौर से गठबंधन के दौर में। जहां सरकार बनाने के लिए एक दूसरे का हाथ थामना ही पड़ता है। लेकिन आम आदमी पार्टी का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा अगर वो इनसे हाथ मिलाएगी। आम आदमी पार्टी एक आंदोलन की उपज है। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन। जिसके नायक अन्ना हजारे थे। जिसने देश में एक नये तरह की चेतना का विस्तार किया। लंबे समय के बाद देश में लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर किया।

लोग भ्रष्टाचार से उकताए हुए थे उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ खडे़ इंडिया एगेंस्ट करप्शन के बैनर तले आंदोलन को हाथों हाथ लिया। बढ़चढ़कर शिरकत की। इस आंदोलन की तासीर राजनीति विरोधी थी। वो परंपरागत स्थापित राजनीति जिसमें राजनीति जनता की सेवा की जगह खुद की जेब भरने का साधन बन गई है, जिसमें जनसेवा की जगह आत्मसेवा ने ली है। पैसा, बाहुबल और ताकत इस राजनीति की खासियत है। जिसके पास करोड़ों रुपये नहीं है वो राजनीति के बारे में सोच भी नहीं सकता। पैसे देकर पार्टी से चुनाव के टिकट खऱीदे जाते हैं और चुनाव में पानी की तरह पैसा बहाया जाता है, वोटर खरीदे जाते हैं और फर्जी वोटर बनाए जाते हैं, विरोधी पार्टी के वोटरों को वोटर लिस्ट से गायब किया जाता है।

पैसा खर्च करने के बाद जब वो सांसद या विधायक बनता है तो कमाई में लग जाता है। ऐसे में सरकार की योजनाएं कागजों में ही बनती हैं और कागजों में ही पूरी भी हो जाती हैं। सारा पैसा नेता, दलाल और नौकरशाह खा जाते हैं। इसलिए राजीव गांधी ने 1985 में मुंबई में कहा था कि केंद्र से सौ रुपय़े भेजे जाते हैं और सिर्फ पंद्रह पैसे ही आम आदमी तक पहुंचता है। यानी पूरे सरकारी तंत्र में लूट मची है।

इस भ्रष्टाचार से निपटने के लिए अन्ना और उनकी टीम ने लोकपाल की मांग की। रामलीला मैदान के दौरान वादे तो खूब हुए लेकिन वायदों पर अमल नहीं हुआ। इस बीच अन्ना की टीम टूट गयी। एक, जो जनआंदोलन के रास्ते पर चलना चाहते थे और दूसरे जो राजनीति में प्रवेश करना चाहते थे। अरविंद की अगुआई में आम आदमी पार्टी बनी। राजनीतिक जमात को जमकर गालियां दी गईं। अरविंद और उनके समर्थकों की नजर में परंपरागत राजनीतिक दल फेल हो चुके हैं। नई पार्टी का दावा है कि उसकी विचारधारा के केंद्र में है आम आदमी और इस आदमी की सत्ता में भागीदारी। इसलिए 'मैं आम आदमी हूं' लिखी हुई टोपी ईजाद की गई। और चुनाव चिन्ह मांगा 'झाड़ू' ।

'टोपी' आम आदमी के अस्तित्व को राजनीति के केंद्र मे लाने की ओर इशारा करता है तो झाड़ू पूरी भ्रष्ट व्यवस्था को साफ करने के लिए है। इस राजनीति ने साफ कहा कि वो लोगों के चंदे पर चुनाव लड़ेगी और आम आदमी के बीच से उम्मीदवार लाएगी। और सारी चीजें जनता की जानकारी में होंगी। इसलिए उसने चंदे से मिलने वाली रकम के सारे हिसाब को वेबसाइट पर डाला और चुनाव क्षेत्र से उम्मीदवारों के नाम मंगवाये। दिलचस्प बात ये है कि जब उनके पास 20 करोड़ हो गये तो उन्होंने कहा कि अब हमें और चंदा नहीं चाहिये। यानी एक पार्टी जो हर कदम पर अपने आपको बाकी की पार्टियों से अलग दिखाऩे की कोशिश कर रही हो वो कैसे बहुमत न मिलने पर परंपरागत और स्थापित राजनीतिक दलों की तरह बर्ताव करती?

परंपरागत राजनीति में बहुमत नहीं मिलने पर पहले दुसरी पार्टियों से समर्थन मांगा जाता है और बाद में उनको तोड़ा जाता है। पूरे देश में सैकड़ों उदाहरण हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी का असर देखिये कि बीजेपी 32 सीटों के बाद भी न तो सरकार बनाने को दावा पेश कर रही है और न ही दूसरी पार्टी को तोड़ने की कोशिश। युपी की कल्याण सिंह सरकार, झारखंड की अर्जुन मुंडा सरकार और कर्नाटक की येदुरप्पा सरकार कुछ उदाहरण हैं। केंद्र की वाजपेयी सरकार को भी 1999 में बचाने के लिये राजनीति के सारे तिकड़मों का इस्तेमाल किया गया था। पर आज दिल्ली में बीजेपी अलग स्वांग कर रही है।

'आप' भी कांग्रेस के समर्थन मिलने के बाद भी सरकार नहीं बनाएगी। जिस कांग्रेस को वो गाली देती रही और राजनीति के भ्रष्टाचार के लिये जिम्मेदार ठहराती रही है, उसी की मदद से सरकार बनाना उच्च श्रेणी की 'अवसरवादिता' होगी और ऐसा करते ही उसमें और दूसरे में फर्क खत्म हो जायेगा और खत्म हो जायेगा उसका 'आकर्षण'। 'आप' भारतीय राजनीति में एक नयी चेतना की वाहक बनी है और जो शेर की सवारी करते हैं वो आसानी से उतर नहीं सकते क्योंकि मामूली सी गलती पर शेर उनको खा जायेगा।

एक जमाने में वी पी सिंह ने भी इस जनता की शेर की सवारी की थी। लेकिन जैसे ही मंडल कमीशन लगाया वो जनता की नजर से उतर गये। और एक जमाने का राष्ट्रनायक कुछ आदमियों के दर्शन के लिये तरस गया। ऐसे में 'आप' के पास सिर्फ अपने बल पर सरकार बनाने के अलावा और कोई चारा नहीं है। और इसके लिये अगर दुबारा चुनाव भी हो तो होना चाहिये।
आशुतोष 
आशुतोष  वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार आशुतोष तीखे तेवरों वाले खबरिया टीवी चैनल IBN7 के मैनेजिंग एडिटर हैं। IBN7 से जुड़ने से पहले आशुतोष 'आजतक' की टीम का हिस्सा थे। वह भारत के किसी भी हिन्दी न्यूज़ चैनल के प्राइम टाइम पर देखे और सुने जाने वाले सबसे चर्चित एंकरों में से एक हैं। ऐंकरिंग के अलावा फील्ड और डेस्क पर खबरों का प्रबंधन उनकी प्रमुख क्षमता रही है। आशुतोष टेलीविज़न के हलके के उन गिनती के पत्रकारों में हैं, जो अपने थकाऊ, व्यस्त और चुनौतीपूर्ण ज़िम्मेदारियों के बावजूद पढ़ने-लिखने के लिए नियमित वक्त निकाल लेते हैं। वह देश के एक छोर से दूसरे छोर तक खबरों की कवरेज से जुड़े रहे हैं, और उनके लिखे लेख कुछ चुनिंदा अख़बारों के संपादकीय पन्ने का स्थाई हिस्सा हैं।

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