ये क्रिकेट बड़ी मस्त चीज है
आशुतोष ,
Jun 03, 2013, 12:08 pm IST
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बचपन में क्रिकेट का बड़ा शौक था। कभी सोचता था कि क्रिकेटर बनूंगा। मध्य वर्ग की विवशता और छोटे शहर की मजबूरी ने बचपन में ही सपने को अकाल मौत दे दी। शौक आज भी बरकरार है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से शौक गुस्से में बदल गया है। और ये भी लगता है कि अच्छा हुआ क्रिकेटर नहीं बना। आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग की घटनाओं से जो चोट लगी सो लगी उसके बाद की क्रिकेट राजनीति ने और भी दिल खट्टा कर दिया। कुछ लोगों ने क्रिकेट को अपनी जागीर बना लिया है। पहले सोचता था कि बेशर्मी सिर्फ राजनीति में ही होती है। पर मैं कनविंस हो गया हूं कि हर चीज राजनीति हो गयी है और बेशर्मी पर सिर्फ राजनीति का ही अधिकार नहीं है। इस गुस्से का नतीजा है कि लोग कहते हैं कि आईपीएल और 20-20 को बैन कर देना चाहिये।
लोग ये भी कहते हैं कि 20-20 ने क्रिकेट को मजाक बना दिया है। हर गेंद को बाउंड्री पार मारने की मजबूरी ने क्रिकेट को जेंटलमैन गेम रहने ही नहीं दिया है। जो मजा टेस्ट मैंच में था वो हुनर अब कहां देखने को मिलता है? पहले खिलाड़ी का हर तरह से टेस्ट होता था। कठिन विकेट पर धैर्य के साथ खेलने का हुनर, खराब पिच पर स्पिन को खेलने की कला और स्पिनर की गेंदों पर चकराते बल्लेबाज। उछाल तेज, पिचों पर गोली की रफ्तार से आती गेंद, उन पर उचक कर हुक और पुल मारने का जज्बा और बाउंसर के सामने खौफ खाते बल्लेबाज। इंग्लैंड की नमी में स्विंग होती गेंदें और उनपर बीट होता बल्ला। ईमानदारी से आज भी मुझे याद आता है 1983 के उत्तरार्ध में दिल्ली में तूफान की तरह आता माल्कम मार्शल और उसको उसी रफ्तार से बाउंड्री के पार पहुंचाता सुनील गावस्कर का अंदाज। उसी तरह से 1975 में चेपोक के मैदान में एंडी रॉबर्ट्स की जानलेवा गेंदों के सामने गुंडप्पा विश्वनाथ के नायाब 97 रन, ऐसा लगता है जैसे भगवान ने खुद बड़ी खूबसूरती से बल्ला चलाया हो। वो रोमांच, वो कलात्मकता अब कहां? और याद रहे विश्वनाथ और गावस्कर ने ये पारियां बिना किसी हेलमेट और तमाम गार्ड्स के बगैर खेली थीं। ये सही है कि पुराने दिनों का वो मंजर अब के टेस्ट में भी नहीं दिखता तो 20-20 में कहां से दिखेगा लेकिन फिर भी मैं परंपरावादियों की तरह 20-20 का विरोधी नहीं हूं और न ही मैं फिक्सिंग की वजह से आईपीएल बंद करने का पक्षधर ही। वक्त बदला है और वक्त के साथ सारी चीजें बदल गयी हैं। समाज बदल गया है। मूल्य बदल गये हैं। राजनीति बदल गयी है ऐसे में खेल न बदले और क्रिकेट वैसे ही रहे ये कैसे संभव है। मुझे आज भी आईपीएल के दिनों में टीवी स्टूडियो से निकलकर देर रात घर पहुंचने पर मैच देखना अच्छा लगता है। क्रिस गेल की धुआंधार बल्लेबाजी बेहद सुकून देती है। चार ओवर में ही डेल स्टेन ये साबित कर देता है कि गेंदबाज में काबिलियत हो तो पच्चीस ओवर फेंकने की जरूरत नहीं होती। 20-20 ने क्रिकेट को अति आधुनिक कर दिया है, बल्कि ये कहें तो बेहतर होगा कि इसने क्रिकेट को एक नये स्वप्नलोक में पहुंचा दिया है। कौन सोच सकता था कि 30 गेंद में शतक और 66 गेंद पर 175 रन। गेल भी ये चमत्कार सिर्फ 20-20 की ही वजह से कर पाये। और कौन भूल सकता है कैरोन पोलार्ड का सीमारेखा पर लिया गया वो कैच जिसे किसी करिश्मे से कम नहीं माना जाता। लोग डान ब्रैडमैन का उदाहरण देते हैं कि कैसे ब्रैडमैन लंच के पहले शतक मार दिया करते थे और वेस्टइंडीज के लियरे कांस्टेनटाइन ने अपनी ही गेंद पर स्कैवर लेग पर कैच लपक लिया था। एकनाथ सोलकर बल्ले पर से कैच पकड़ लेते थे। लेकिन ये अपवाद थे। आज ये अपवाद नहीं नियम हैं, रोजमर्रा की बातें। हवा में उड़ता हुआ चालीस का रिकी पॉन्टिंग और नयी उम्र का अजिंक्य रहाणे सभी आज सोलकर और कांस्टेनटाइन को टक्कर देते हैं। क्रिकेट अब फार्मूला रेस की तरह है जहां रफ्तार है, रोमांच है, चुस्ती है और हवा में गुलाटी मारता एथलीट है। वर्ना क्रिकेट उबाऊ होने लगा था। मुदस्सर नजर और क्रिस टैवरे की बल्लेबाजी ने उसकी कब्र खोद दी थी। फुटबाल की बढ़ती लोकप्रियता के आगे क्रिकेट दम तोड़ देता। ऐसे में मेरे लिहाज से पहले वनडे और बाद में 20-20 ने क्रिकेट को नयी जिंदगी दी। क्रिकेट आकर्षक हो गया। दिक्कत आईपीएल में नहीं इसके इर्द गिर्द फैले व्यवसाय में है। लोग कहते हैं कि आईपीएल में पैसा है। लड़कियां हैं। पार्टियां हैं। ड्रग्स है। शराब है और इस भंवर में फिसलते नयी उम्र के लड़के हैं। जो एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी को श्रीशांत बना देता है। पर हम ये क्यों भूलते है कि श्रीशांत के पहले अजहरुद्दीन थे और अजय जड़ेजा थे। आज स्पॉट फिक्सिंग कहा जाता है तो दस बारह साल पहले मैच फिक्सिंग था। सलीम मलिक थे तो आज सलमान बट्ट हैं। मोहम्मद आसिफ हैं। मोहम्मद आमिर हैं। हम क्यों भूलते हैं कि आज भी भारतीय क्रिकेट राहुल द्रविड़, अनिल कुंबले और वी वी एस लक्ष्मण को याद करता है जिनकी ईमानदारी पर कोई ख्वाब में भी शक नहीं कर सकता। और जिनको फिक्स करने के बारे में अंडरवर्ल्ड भी नहीं सोच सकता। ऐसे में सवाल 20-20 का नहीं है। सवाल उसके मैनेजमेंट का है। जिस मैनेजमेंट की असली सूरत तीन खिलाड़यों की गिरफ्तारी के बाद दिखाई दी। क्या ये महज इत्तफाक है कि बीसीसीआई के अध्यक्ष श्रीनिवासन का दामाद सट्टेबाजी के आरोप में गिरफ्तार होता है? आईसीसी दामाद की करतूतों के बारें में बोर्ड का आगाह करता है और किसी के कानों पर जूं नहीं रेंगती? देशभर में श्रीनिवासन के इस्तीफे की मांग उठी लेकिन उन्होंने अंत तक नैतिक जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया। और भारतीय राजनीति के चंद बेहद ताकतवर लोग जो बोर्ड में भी शक्तिशाली हैं लंबे समय तक चुप्पी साधे रहे। भारतीय क्रिकेट के वो नाम जिनका नाम लेते हम थकते नहीं उनकी जुबान सिल गयी। उनके मुंह से एक शब्द नहीं निकला और मूक दर्शक हो सारा खेल देखते रहे। क्योंकि बोर्ड ने पैसे के बल पर इन सभी लेजेंड्स के मुंह बंद कर दिये हैं। क्रिकेट में पैसा होना चाहिये लेकिन पैसा क्रिकेट पर भारी पड़ने लगे ये नहीं होना चाहिये। क्रिकेट खेल की जगह धंधा बन जाये तो यही होगा। क्रिकेट सत्ता का खेल हो जायेगा तो स्पॉट भी फिक्स होगा और राजनीति का अखाड़ा भी होगा। जहां श्रीशांत जैसे कमजोर आत्मबल वाले लोग फंसेंगे और क्रिकेट बदनाम होगा। ऐसे में बंद आईपीएल नहीं, आईपीएल को धंधा बनाने वाले बंद होने चाहिए।
आशुतोष
वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार आशुतोष तीखे तेवरों वाले खबरिया टीवी चैनल IBN7 के मैनेजिंग एडिटर हैं। IBN7 से जुड़ने से पहले आशुतोष 'आजतक' की टीम का हिस्सा थे। वह भारत के किसी भी हिन्दी न्यूज़ चैनल के प्राइम टाइम पर देखे और सुने जाने वाले सबसे चर्चित एंकरों में से एक हैं। ऐंकरिंग के अलावा फील्ड और डेस्क पर खबरों का प्रबंधन उनकी प्रमुख क्षमता रही है। आशुतोष टेलीविज़न के हलके के उन गिनती के पत्रकारों में हैं, जो अपने थकाऊ, व्यस्त और चुनौतीपूर्ण ज़िम्मेदारियों के बावजूद पढ़ने-लिखने के लिए नियमित वक्त निकाल लेते हैं। वह देश के एक छोर से दूसरे छोर तक खबरों की कवरेज से जुड़े रहे हैं, और उनके लिखे लेख कुछ चुनिंदा अख़बारों के संपादकीय पन्ने का स्थाई हिस्सा हैं।
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