सचिन से आगे धोनी है
आशुतोष ,
Mar 25, 2013, 16:53 pm IST
Keywords: Mahendra Singh Dhoni Sachin Tendulkar Sachin - A Cricketer of the Century Indian society Mansoor Ali Khan Pataudi Gavaskar Azharuddin Sourav Ganguly महेंद्र सिंह धोनी सचिन तेंडुलकर सचिन-ए क्रिकेटर ऑफ सेंचुरी भारतीय समाज मंसूर अली खान पटौदी गावस्कर अजहरुद्दीन सौरव गांगुली
बड़े दिनों के बाद महेंद्र सिंह धोनी और सचिन तेंडुलकर को एक साथ एक मंच पर देखा। मौका था विमल कुमार की सचिन पर आई किताब - सचिन-ए क्रिकेटर ऑफ सेंचुरी के विमोचन का। इस मौके पर सचिन तो नहीं बोले लेकिन उनको आम लोगों के साथ बातचीत करते सुना। सचिन में एक झिझक दिखी औऱ साथ ही आम लोगों से बातचीत करते हुये सतर्कता भी। उनको देख कर लगा वो कुछ भी कहने से पहले नापतौल लेते हैं। समझबूझ लेते हैं। कहीं उनकी बात को गलत तो नहीं लिया जाएगा। कहीं कोई दूसरा अर्थ न लगा ले। कहीं कोई विवाद न खड़ा हो जाए। उनकी 'बॉडी लैंग्वेज' साफ कह रही थी कि वो सबके सामने अपने दिल को खोलने को तैयार नहीं हैं। और न ही वो अपने को अजनबियों के बीच सहज पाते हैं। वो शायद हमेशा इस एहसास के साथ जीते है कि उन्हें रिजर्व रहना चाहिए। लेकिन धोनी अलग थे। वो किसी को भी इंटरव्यू नहीं देते और न ही किसी पत्रकार से ज्यादा घुलते मिलते हैं। लेकिन जब भी मिलते हैं तो खुलकर, एकदम बिंदास। न बोलने के पहले सोचना और न बोलने के बाद सोचना कि कोई क्या अर्थ निकालेगा। किसी तरह का संकोच नहीं।
मैं वहां बैठे-बैठे सोचने लगा। ये फर्क क्यों है? जबकि दोनों ही अपने-अपने फन के माहिर हैं। दोनों को ही महंगी कारें अच्छी लगती हैं। दोनों का दुनिया में नाम है। दोनों ही भारतीय समाज के गौरव हैं। दोनों ने ही भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाईयां दी हैं। दोनों को ही इतिहास भुला नहीं पाएगा। सचिन का शुमार हमेशा ही दुनिया के सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों में होगा। धोनी निश्चित रूप से उतने प्रतिभाशाली नहीं हैं। सचिन जैसी बल्लेबाजी वो नहीं कर सकते और न ही वो सचिन की तरह शतकों का शतक लगा सकते हैं। पर एक खिलाड़ी के तौर पर उनके खेल का बेखौफपन सचिन से कम नहीं है। वो गेंद की पिटाई करते हैं तो लोग वैसे ही दांतों तले उंगली दबा लेते हैं जैसे सचिन की बल्लेबाजी के समय। कप्तान के तौर पर तो धोनी का कोई सानी ही नहीं है। सचिन भी कप्तान रहे हैं लेकिन विश्व क्रिकेट सचिन को एक कप्तान के रूप में याद नहीं करेगा। सचिन भी उस वक्त को भूल जाना चाहेंगे। इसके उलट धोनी ने नये प्रतिमान गढ़े। भारतीय टीम ने जितनी जीत उनकी कप्तानी में हासिल की, उतनी किसी भी भारतीय को नसीब नहीं हुई। धोनी ने इस मामले में मंसूर अली खान पटौदी, गावस्कर, अजहरुद्दीन और सौरव गांगुली को काफी पीछे छोड़ दिया है। धोनी ने टेस्ट और वनडे में सबसे ज्यादा जीत भारत की झोली में डाली है। वो अकेले कप्तान हैं जिन्होंने 20-20 वर्ल्ड कप जीता। वनडे में भारत को विश्व विजेता बनाया। टेस्ट मैचों में भारत को नंबर वन किया। अपनी IPL टीम चेन्नई सुपर किंग्स को दो-दो बार चैंपियन बनाया। साथ ही चैंपियंस लीग भी जीती। सचिन की अगर बल्लेबाजी में कोई तुलना नहीं है तो धोनी कप्तानी की कप्तानी में। वो कप्तानी के तेंडुलकर हैं। लेकिन एक चीज दोनों को अलग कर देती है। वो है उनकी बॉडी लैंग्वेज। और जीवन जीने का अंदाज। सचिन का संकोच उस युग की देन है जिसमें सचिन ने क्रिकेट खेलनी शुरू की। सचिन ने 1989 में टीम में प्रवेश किया था। उस वक्त के भारत और आज के भारत में जमीन आसमान का फर्क है। उस वक्त हिंदुस्तान एक गरीब मुल्क था। दुनिया के दूसरे मुल्कों के सामने उसकी कोई हैसियत नहीं थी। उसकी अर्थव्यवस्था खस्ता थी। और दुनिया उसको गंभीरता से नहीं लेती थी। गरीब आदमी में जो झिझक होती थी, जो संकोच था वो उस समय के हिंदुस्तान की पहचान थी। उसका आत्मविश्वास कम था। सचिन के करिश्मे के कारण भारतीय क्रिकेट में लगातार निखार आता गया। इस दौरान भारत भी लगातार तरक्की करता गया। धीरे-धीरे उसकी पहचान और हैसियत दुनिया ने स्वीकारनी शुरू की। लेकिन सही मायनों में उसने अपने पंख सन 2004-5 के बाद फैलाने शुरू किये। आर्थिक मजबूती और तकनीकी क्रांति ने भारतीय समाज में नये मूल्यों का निर्माण करना शुरू कर दिया था और एक नया समाज बनने लगा था। यही वो वक्त था जब धोनी भारतीय क्रिकेट में अवतरित हुए। एक विस्फोटक बल्लेबाज का जन्म हुआ जो किसी की परवाह नहीं करता। जो किसी के प्रभामंडल से प्रभावित नहीं होता। 2007 में वो कप्तान बन गया। कुछ महान खिलाड़ी कप्तान के रूप में धोनी के मैदान में चाल ढाल को देखकर कहने लगे थे कि विवियन रिचर्ड्स के बाद ऐसा खिलाड़ी आया है जिसकी 'बॉडी-लैंग्वेज' मैदान में इतनी बेखौफ और बिंदास है। सचिन तब भी भारतीय टीम के सदस्य थे। उनकी बल्लेबाजी का जलवा बरकरार था। लेकिन उनकी चाल ढाल और 'बॉडी-लैग्वेज' में विनम्रता थी। साथ ही स्थिरता भी। धोनी इसके विपरीत पूरी तरह से बेलौस। बेअंदाज। आत्मविश्वास से भरपूर। इस मंच पर धोनी से पूछा गया कि सचिन जैसे महानतम खिलाड़ी की कप्तानी करते हुए वो कैसा महसूस करते थे धोनी ने बेबाक कहा। सचिन को सलाह देने में वो कभी झिझकते नहीं थे। खासतौर पर जब सचिन गेंदबाजी करते थे। सचिन अगर कहते कि वो ऑफ स्पिन डालना चाहते हैं तो धोनी कह देते पाजी लेग ब्रेक डाले तो बेहतर होगा। हालांकि धोनी ने माना की सचिन का कद इतना बड़ा है कि मैदान के बाहर उन्हें सचिन से बात करने में वो सहज महसूस नहीं करते। ये नये और पुराने भारत के बीच का अंतर था। बिंदास भारत, आत्मविश्वास से लबालब भारत। और दूसरी तरफ संकोची भारत। एक जो दुनिया को अपनी मुठ्ठी में कर लेना चाहता है। दूसरा जो दुनिया को सिर्फ देखना चाहता है। एक बेपरवाह है तो दूसरा पुरानी बंदिशों में बंधा है। धोनी तब टीम में नहीं आया था। उसके बाल काफी बड़े थे। किसी साथी ने कहा ये बड़े-बड़े बाल देखकर लोग गलत समझेंगे। धोनी ने तब कहा था एक दिन पूरा देश ये हेयर स्टाइल रखेगा। आकाश चोपड़ा ने ये बात बतायी थी। बाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने धोनी को बोला ये बाल मत कटवाना और धोनी हेयर स्टाइल नया फैशन बन गया था। ये है धोनी। उसकी पीढ़ी। नयी पीढ़ी। जो अपनी शर्तों पर जिंदगी जीती है और जिसके लिये किसी का प्रभामंडल कोई मायने नहीं रखता। भारत को इस पीढ़ी से ही उम्मीद है क्योंकि धोनी ही नया भारत है। सचिन अतीत हैं जिसको याद किया जायेगा सम्मान से। लेकिन दुनिया को मुठ्ठी में तो धोनी की ही पीढ़ी करेगी। इससे सचिन के सम्मान में कमी नहीं आती और न ही उसकी पीढ़ी को कमतर आंकना चाहिये। पर सचिन से आगे ले जाने के लिये धोनी ही बनना होगा, सचिन नहीं। |
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