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जब गुरु ने परखी शिष्यों की दृष्टि
मुनि नथमल ,
Jan 23, 2013, 11:00 am IST
Keywords: Guru - student examination of student ubiquitous light darkness Arabic personnel lake गुरु - शिष्य शिष्यों की परीक्षा सर्वत्र प्रकाश अंधकार अरबी कार्मिक सरोवर
![]() गुरु ने दूसरे शिष्य से भी यही प्रश्न पूछा। उन्होंने कहा, "गुरुदेव! जगत् बहुत अच्छा है। प्रकाश ही प्रकाश है। रात बीती। उजाला हुआ। सर्वत्र प्रकाश फैल गया। प्रकाश आता है तो अंधकार दूर हो जाता है। वह सबकी मुंदी हुई आंखों को खोल देता है, यथार्थ को प्रकट कर देता है। जो अंधकार से आवृत था, उसे क्षण भर में अभिव्यक्ति दे देता है, अनावृत्त कर देता है। कितना सुंदर और लुभावना है यह जगत कि जिसमें ऐसा प्रकाश देता है। देखता हूं, दिन आया। बीता। रात आई। बीती फिर दिन आ गया। इस प्रकार दो दिनों के बीच एक रात। प्रकाश अधिक, अंधकार कम। दो बार उजाला, एक बार अंधेरा।" अति सर्वत्र वर्जयेत् : एक अरबी कार्मिक तीर्थ नाम का सरोवर था। उसके तीर पर वंजुल नाम का वृक्ष था। उसकी शाखा पर चढ़कर कोई पशु-पक्षी सरोवर में गिरता, वह मनुष्य हो जाता। कोई मनुष्य वैसा करता तो वह देव हो जाता। कोई दूसरी बार डुबकी लगाता तो मूल रूप में आ जाता। एक दिन उस वृक्ष पर एक बंदर और एक बंदरिया बैठे थे। उसी समय एक मनुष्य और उसकी पत्नी आये। वृक्ष से झंपापात किया। सरोवर में गिरते ही वे दिव्य ज्योतिर्धर हो गए। बंदर-बंदरिया ने देखा तो वे भी सरोवर में कूद पड़े। वे तत्काल पुरुष-स्त्री होकर उससे निकले। बंदर ने अपनी पत्नी से पूछा, "क्यों न हम एक बार फिर इसमें डुबकी लगाएं और देव हो जाएं।" "पत्नी ने कहा, "अति सर्वत्र वर्जयेत्।" पर बंदर ने पत्नी की बात नहीं मानी। वह पानी में कूद पड़ा। फिर बंदर हो गया। वह सुंदर युवती राजा की रानी हो गई। बंदर को मदारी पकड़कर ले गया। राजा-रानी के सामने बंदर के खेल का आयोजन हुआ। बंदर रानी को देख रो पड़ा। रानी ने कहा, "मत रोओ, भूल का प्रायश्चित करो।" समझ का फेर : एक आदमी तालाब के किनारे घूमने जाया करता था। यह उसका रोज का काम था। पानी में उसकी परछाई पड़ती। तालाब में मछलियां थीं। एक मछली ने पानी में पड़ी आदमी की परछाई को देखा। उसे दिखाई दिया कि सिर नीचे है। एक दिन देखा, दो दिन देखा, दस दिन देखा। उसकी धारणाा दृढ़ हो गई। उसने जान लिया कि आदमी वह होता है, जिसका सिर नीचे और पैर ऊपर होते हैं। एक दिन वह आदमी तालाब के किनारे-किनारे घूम रहा था। मछली पानी की सतह पर आई। उसने आदमी को देखा। उसका सिर ऊपर है, पैर नीचे। उसने सोचा शायद आदमी शीर्षासन कर रहा है, नहीं तो आदमी ऐसा नहीं हो सकता। मछली ने सोचा, आदमी वह होता है, जिसका सिर नीचे और पैर ऊपर होते हैं। उसने कहा, "आज मैं देख रही हूं कि इसका सिर ऊपर है और पैर नीचे। अवश्य ही यह कोई उल्टी क्रिया कर रहा है। शीर्षासन कर रहा है। उसकी धारणा मजबूत हो गई।" (यशपाल जैन द्वारा संपादित एवं सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक 'हमारी बोध कथाएं' से साभार) |
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