गर्मियों में खादी वस्त्रों का फैशन
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Jun 10, 2012, 13:21 pm IST
Keywords: Khadi designs beautifully India Khadi Fabrics Fashion Fashion designer dress new design khadi products promotion khadi business growth खादी डिजायनों में खूबसूरती भारत खादी के वस्त्रों फैशन फैशन डिजायनर परिधान नई डिजाइन खादी के उत्पाद प्रोत्साहन खादी के व्यवसाय वृद्धि
जयपुर: खादी में डिजायनों में खूबसूरती की नई संभावनाएं नजर आने लगी हैं। इसे देखते हुए अब लग रहा है कि भारत में खादी के वस्त्रों का फैशन भी आने वाले दिनों में चल निकलेगा। इसको लेकर भारत के फैशन डिजायनर कई किस्मों के परिधान और समयानुसार नई डिजाइनों में लेकर उतरने लगे हैं। इससे खादी के उत्पाद को प्रोत्साहन और खादी के व्यवसाय में वृद्धि हुई है।
पिछले दो-तीन वर्षो में खादी के वस्त्रों को लेकर कई फैशन शो गुजरात और वाराणसी में सफलतापूर्वक आयोजित किए जा चुके हैं जिनमें देश के नामी गिरामी माडलों ने अपनी प्रतिभागिता से इसकी समकालीनता का मान बढ़ाया है और साबित कर दिया है कि खादी में भी किसी भी फैशनेबल वस्त्र में देशी या विदेशी वस्त्र के तमाम गुण विद्यमान हैं। खादी के भविष्य को देखते हुए महात्मा गांधी ने खादी वस्त्रों में छिपी अपार संभावनाओं को देख कर ही कहा था कि खादी के वस्त्रों का और इससे जुड़ी हुई वस्तुओं के उत्पादन से भारतीय गांवों में एक बहुत बड़ा उद्योग बन सकता है जिससे यहां के लोगों को विदेशी कपड़ों पर मोहताज नहीं रहना पड़ेगा और अधिक मूल्य नहीं देने पड़ेंगे तथा गांवों में रोजगार के अवसर मिलेंगे। खास कर महिलाओं की बेकारी दूर करने में इसकी बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है। इसी तथ्य को समझते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वर्ष 2001 में कहा था, "खादी ग्रामोद्योग महात्मा गांधी का दर्शन है, विचार धारा है। हमें गांधी जी के खादी के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नए सिरे से सोच कर काम करना होगा। खादी परिवार से जुड़े लोग नया वातावरण तैयार करें तथा खादी को समाज सुधार, रोजगार, श्रम की प्रतिष्ठा तथा रचनात्मक कार्य से जोड़ कर नई पीढ़ी के लिए आधार बनाएं।" खादी का इतिहास राजस्थान में आठ दशक से भी अधिक पुराना हो चुका है। यदि इतने लंबे अंतराल की उपलब्धियों पर एक नजर डालें तो लगता है कि 1925 में अपने स्थापना वर्ष में राजस्थान चर्खा संघ ने जिस इमारत की आधारशिला रखी थी आज वह न सिर्फ मजबूत है बल्कि नई संभावनाओं से पूरित लगती है। उसके विकास के नए आयाम सामने दिखलाई दे रहे हैं। वैसे चर्खा संघ का कार्यालय तो अजमेर में खोला गया था लेकिन दो वर्षो बाद ही वर्ष 1927 में जयपुर स्थानांतरित कर दिया गया और इसके एक दशक बाद वर्ष 1935 में गोविंदगढ़ में स्थायी रूप से स्थानांतरित कर दिया गया। अपनी इस यात्रा में खादी बोर्ड को न सिर्फ जमना लाल बजाज जैसे महान देशभक्तों का संरक्षण मिला बल्कि ओम दत्त शास्त्री और मदन लाल खेतान जैसे देशसेवकों का भरपूर सहयोग मिला था क्योंकि यह गांधीजी का ऐसा सपना था जिसे थोड़ा श्रम लगा कर मूर्त रूप दिया जा सकता था। राजस्थान में बिजोलिया आंदोलन के दौरान चर्खा संघ को बहुत समर्थन मिला। चर्खा संघ को वर्ष 1953 में सर्व सेवा संघ में विलीन कर दिया गया। तब से लेकर आज तक चर्खा का महत्व जिलों और प्रदेश की सीमाओं से निकल कर अंतर्राष्ट्रीय हो गया है। राज्य में इसकी विपुल व्यावसायिक संभावनाओं को देखते हुए राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 1955 में खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड का गठन किया गया, जो उसी वर्ष 1 जुलाई से काम कर रहा है। इस बोर्ड का काम उद्यमी को प्रोत्साहित करना, उनको सहायता देना तथा लोगों को घरों पर कार्य करने की संभावना देखते हुए उनको आर्थिक सहायता पहुंचाना है। महात्मा गांधी ने इसकी व्यावहारिकता और जरूरत को देखते हुए कहा था, "खादी का मतलब है ऐसा रहन सहन जिसकी नींव अहिंसा पर हो। जो मतलब खादी का आजादी से पहले था और आज भी है। मुझे इसमें जरा भी शक नहीं कि अगर हमें वह हासिल करनी है जिसे हिंदुस्तान के करोड़ों गांव वाले अपने आप समझने और महसूस करने लगें तो चर्खा कातना और खादी पहनना आज पहले से भी ज्यादा जरूरी है।" |
क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं? |
|
हां
|
|
नहीं
|
|
बताना मुश्किल
|
|
|