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सेना के रुख पर सवालिया निशान क्यों

सेना के रुख पर सवालिया निशान क्यों पिछले तीन सालों में कांग्रेस के नेतृत्व में चल रही सरकार में घट रही घटनाएं और उसके दूरगामी परिणामों से देश की आवाम चिंतित ही नहीं बेहद परेशान भी है । पिछले दिनों जिस तरह से देश में सैन्य बगावत की खबरों की अटकलें लगी वो आजाद भारत के इतिहास में एक अनहोनी की तरह है। इस तरह के सैन्य बगावत की आशंका की अटकलें भी आजाद भारत में मजबूत होते जा रहे लोकतंत्र के लिए, देश की राजनीति के लिए और सबसे आगे जाकर देश के लोगों के लिए घातक हैं। इस तरह की अटकलों के लिए सिर्फ और सिर्फ देश का शीर्ष राजनैतिक नेतृत्व जिम्मेदार यानि प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह और रक्षा मंत्री ए के एंटनी।

हमारे देश के प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री बेहद ईमानदार माने जाते है। हैं भी । लेकिन दोनों ने अपनी इस ईमानदार और चमकीली छवि को बरकरार रखने के लिए गवर्नेंस को ही दांव पर लगा दिया। देश में उचित निर्णय नहीं होने दे रहे या फिर जानबूझकर अहम फैसलों को टाला जा रहा है। पैसों को लेकर ये दोनों भ्रष्ट नहीं हैं लेकिन जिस तरह से गवर्नेंस में उनकी ईमानदार छवि ने बाधा डाली है उससे हमारे प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री दोनों राजनीतिक तौर पर भ्रष्ट ही माने जाएंगे क्योंकि अपनी छवि की कातिर इन्होंने ईमानदार फैसले भी नहीं लिए।

एंटनी और प्रधानमंत्री ने सेनाप्रमुख के उम्र के विवाद को एक ऐसे मुकाम पर पहुंचने दिया जिससे सैन्य बगावत जैसी बेबुनियाद अटकलें लगने लगी । जिस तरह से सेना प्रमुख का उम्र विवाद और फिर उसके बाद के घटनाक्रम को सरकार और रक्षा मंत्रालय ने हैंडल किया उससे लगने लगा कि इस देश में सरकार नाम की चीज काम ही नहीं कर रही है । अगर रक्षा मंत्री ने अपने राजनैतिक कौशल का जरा भी इस्तेमाल किया होता तो सेना प्रमुख का उम्र विवाद देश के सर्वोच्च अदालत तक पहुंचता ही नहीं।

एंटनी ने कभी इस मसले पर सेनाप्रमुख से बात करने और उस विवाद को सम्मानजनक तरीके से सुलझाने का प्रयास किया हो ऐसा ज्ञात नहीं हो सका । एंटनी ने अपने बॉस यानि प्रधानमंत्री की तरह चुप्पी साध कर इस मसले को बढने दिया । रक्षा मंत्री के अपने दायित्व को निभाने में असफल रहे एंटनी को प्रधानमंत्री ने भी खुली छूट दे दी जिसका नतीजा यह हुआ कि सेनाध्यक्ष की शिकायतें दूर नहीं हो पाई । एंटनी की छवि एक ईमानदार राजनेता की रही है और उनपर पैसों के भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं लेकिन अगर एक ईमानदार नेता की क्राइसिस को मैनेज करने की क्षमता बेहतर हो यह जरूरी नहीं है। न तो कभी एंटनी ने और न ही प्रदानमंत्री ने दनरल वी के सिंह को बुलाकर इस विवाद को सुलझाने की कोशिश की । बल्कि हुआ और उल्टा – सेनाप्रमुख को बगैर विश्वास में लिए उनके उत्तराधिकारी का ऐलान कर दिया गया । इसके अलावा रक्षा मंत्रालय से वी के सिंह के खिलाफ खबरें प्लांट की जाने लगी जिसने पूरे विवाद को और हवा दे दी।  

सेनाप्रमुख जनरल वी के सिंह की शिकायतों को दूर करने में पूरी तरह से नाकाम रहने के बाद भी रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री ने सेना से मुतल्लिक गंभीर मसलों पर तवज्जो नहीं देकर देश को अंधेर में रखा । जनरल सिंह ने तकरीबन साल भर पहले प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री को खत लिखकर सेना की तैयारी और असलाहों की कमी की ओर ध्यान दिलाया था, सेनाध्यक्ष के उस खत पर क्या कोई कार्रवाई हुई । नहीं हुई। न तो मनमोहन सिंह और ना ही रक्षा मंत्री की तरफ से कोई पहल हुई । आज देश में सेना की हालत यह है कि अगर युद्ध होता है तो हमारे पास चंद दिनों के असलहे हैं । हमारे तोपखानों की हालत खस्ता है । बोफोर्स जैसे तोप तकरीबन पच्चीस साल से नहीं खरीदे गए हैं । दशकों पुराने राइफलों से भरोसे हम जंग जीतने का ख्बाव पाले बैठे हैं।

तकरीबन साल भर पहले जब सेनाध्यक्ष ने पत्र लिखकर रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री को वस्तुस्थिति से अवगत कराया था तब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई । अब सेनाध्यक्ष के पत्र के लीक होने के बाद सामने आया है तो जनरल सिंह के आलोचकों ने यह कह कर उनपर हमला शुरू कर दिया कि इस पत्र का लीक होना देश द्रोह है ।  कोई मनमोहन सिंह और रक्षा मंत्री से यह सवाल क्यों नहीं पूछ रहा है कि जनरल के पत्र के बाद सेना की तैयारियों के बारे में प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने क्या कदम उठाए।

क्या सेना की तैयारियों में कमी को दूर करने की बजाए उसपर कुंडली मारकर बैठ जाना देशद्रोह नहीं है । साल भर की चुप्पी के बाद जब पत्र लीक हो जाता है तो आनन फानन में तीनों सेना के प्रमुखों की बैठक होती है और कई अहम फैसले कर लिए जाते हैं, खरीद नीति पर महर लग जाती है । सवाल यह उठता है कि पत्र के लीक होने के पहले इस तरह की बैठक और फैसले क्यों नहीं लिए गए। क्या देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने के लिए रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।  

इस बात से किसी को कोई इंकार नहीं है कि भारत में रक्षा सौदों में दलालों की अहम भूमिका है। भारत में आर्म्स लॉबी बहुत मजबूती से काम करती है। उसकी ताकत और पहुंच का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सेना का एक आला अफसर सेनाध्यक्ष के कार्यालय में जाकर उनसे रिश्वत की पेशकश करता है । वहां वो जो बात कहता है वो बेहद अहम है जिसपर ध्यान देने से एक भयावह तस्वीर सामने आती है । वह सेनाध्यक्ष को 14 करोड़ रुपए के घूस की पेशकश के साथ यह कहता है कि आपसे पहले के भी आर्मी चीफ पैसे लेते थे और आपके बाद के भी लेंगे इसलिए आप भी ले लीजिए। घूस की पेशकश करनेवाले के इस कथन से सेना में गहरे पैठ जमा चुके आर्म्स लॉबी की पहुंच और उसके हिम्मत का अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन जब जनरल वी के सिंह ने रिश्वत की इस पेशकश का खुलासा किया तो लोगों ने खुलासे की टाइमिंग पर सवाल खड़े किए।

जनरल वी के सिंह की यह कहकर आलोचना की गई कि वो साल भर चुप क्यों रहे । कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने यह कहकर जनरल को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की कि सालभर तक चुप्पी साधने के बाद वी के सिंह का ज्ञान चक्षु क्यों खुला । कांग्रेस के उन प्रवक्ताओं को यह याद दिलाने की जरूरत है कि जब गुजरात के आईपीएस अफसर संजीव भट्ट ने 6 साल बाद दंगों के बारे में कई खुलासे किये थे तो उसपर वही लोग नरेन्द्र मोदी का इस्तीफा गला फाड़ फाड़ कर मांग रहे थे।

क्या उन्हीं तर्कों के आधार पर रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री से इस्तीफा नहीं मांगा जाना चाहिए । सवाल टाइमिंग का नहीं है बल्कि इस मानसिकता का है कि शूट द मैसेंजर । खुलासा करनेवाले को इतना बदनाम कर दो कि वो किसी लायक नहीं रहे । कांग्रेस के नेताओं ने अन्ना हजारे से लेकर अरविंद केजरीवाल तक को बदनाम करने की कोशिश की लेकिन हर जगह दांव उल्टा पड़ा । राजनीति में कहा जाता है कि एक चाल के असफल होने से लोग उससे सबक लेते हैं लेकिन कांग्रेस अपनी गलतियों से सबक लेने को तैयार नहीं है । अब वक्त आ गया है कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी कुछ राजनैतिक फैसले करें और देश हित में फैसले लेनेवालों को आगे बढ़ाकर राजनीतिक नेतृत्व के लिए जिम्मेदार बनाएं । देश को ईमानदार नेताओं की जरूरत है लेकिन देश को उतनी ही जरूरत फैसले लेने वाले नेताओं की भी है।
अनंत  विजय
अनंत  विजय लेखक अनंत विजय वरिष्ठ समालोचक, स्तंभकार व पत्रकार हैं, और देश भर की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत छपते रहते हैं। फिलहाल समाचार चैनल आई बी एन 7 से जुड़े हैं।