'शिवाजी, राणा, भगत, बोस जैसा राजा चाहिए'
नरेन्द्र सिंह राणा ,
Jan 03, 2013, 13:40 pm IST
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इज्जत, सुरक्षा और अधिकार मिले सबको। समाज सम्मान दे, सरकार सुरक्षा दे, संविधान अधिकार दे। हर हाल में हमें दूसरे की माँ, बहन और बेटी को अपनी माँ , बहन और बेटी से अधिक इज्जत, सुरक्षा और सम्मान देना है। उस बलिया की बहादुर बालिका के साथ जो कुछ हुआ उसकी जितनी भ्रत्सना, निंदा की जाए कम है। वह असहनीय पीड़ा से लड़ती हुई पंचतत्व में विलिन हो गई। पूरा देश उस दिन से स्तब्ध है, दुखी है। आगे फिर कोई ऐसी ही दरिंदगी नही होगी इसको मानने को कोई तैयार नही दिखता। जिस देश में नारी को माँ दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती कह कर पूजा जाता है। साल में शेष त्योहार तो एक बार ही मनाए जाते है जैसे होली दीपावली, दशहरा आदि लेकिन नवरात्रि का त्यौहार दो बार मनाया जाता है।
प्रति 6 माह पर 9 दिवसीय नवरात्रि मनायी जाती है। माँ का भिन्न-भिन्न रूपों में पूजन होता है। कन्याओं के पैर पूजे जाते है, उनको भोजन करा कर, दक्षिणा देकर उनकी पूजा कर फिर भोजन करते है घरवाले। पूरे देश के मंदिरों में हवन, पूजन होता है। कन्याओं का ऐसा सम्मान और कही नही देखा जाता। शायद ही कोई घर हो जहां धन का , माँ लक्ष्मी के रूप में, श्रृद्धा का माँ पार्वती के रूप ज्ञान का माँ सरस्वती के रूप में पूजन न होता हो। जिस संस्कृति में स्वयं भगवान ने अपने नाम के आगे देवी का नाम लिखा है। सीताराम, राधेश्याम, गौरीशंकर। मंत्रोचारण में भी ऊँ गौरी शंकराय नमः आता है। हमारे ऋषि, मुनियों ने नारी के सम्मान को सर्वोपरि बताया है। विश्व के सबसे प्राचीन ज्ञान वेदों में लिखा ”यत्र नारी पूजयन्ते तत्र रमन्ते देवता। शुक्रवार को माँ संतोषी का व्रत होता है। शुक्रवार व्रत व नवरात्रि व्रत पर फिल्में बनी और सुपरहिट हुई है। सत्यसंग, कथाओं में नित्य माहत्मा नारी पूजन, उनके सम्मान को संस्कृति की रीड़ बताते हुए उनके प्रति सदा आदर और अपनों से बढकर मानने के स्पष्ट निर्देश देते है। श्री रामचरित मानस के रचियता मेरे बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी ने चैपाई लिखी ”जो आपन चाहो कल्याणा, सुयश, सुमिति, शुभ गति सुख नाना” तो परनारी लिलार गौसाई- तजो चैथ के चंद की नाई” अर्थात व्यक्ति हो , राजा हो यदि वह अपना कल्याण चाहता है, यश, सुमिति, अच्छी गति और सुख चाहता है तो उसे पराई स्त्री को कुदृष्टि से नही देखना चाहिए। चैथ के चन्द्रमा की तरह त्याग देना चाहिए। किसी भी प्रकार की पूजा को, दर्शन को बिना पत्नी के, माँ के, बहन के अधूरा फल देने वाला माना जाता है। आम चलन है कि जिस घर में बेटी का विवाह हो जाता है वहाँ पर पिता अन्न भी ग्रहण नही करता है। जिस गाँव की बेटी कही ब्याही है वहाँ गांव वाले जाकर बेटी, बहन को आदर, सम्मान विदाई स्वरूप कुछ नेग भी देते है। आजादी के बाद के हालात बद से बदतर हुए है यहाँ पर। नेता बेशर्म हो गए, निर्लज्ज की भूमिका में दिखायी पड़ते है क्यों ? दूर्भाग्य से इस देश की सत्ता उनके हाथों में 90 तक रही जिनका अपना कोई गांव नही है। माँ विदेशी है, दादी ने फारशी से शादी की, खुद का पता नही क्या करेंगे। हमारा दुर्भाग्य नही तो क्या है यह। हम जाति-पाती, धर्म के बटवारे में बटे है। अईयाशी को फैशन माना जाता है। यहां कौन करेगा उन आर्दशों का पालन जो कभी यहाँ के राजा करते थे। शिवाजी माहराज के दरबार में एक बार उनकी जीत के बाद एक अति सुन्दर महिला को पेश किया गया। वह हारे हुए पक्ष की थी। बहुत सहमी थी कि न जाने उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाएंगा। माहराज शिवाजी उसको देखने के बाद बोले काश मेरी माता भी इतनी सुन्दर होती तो मैं भी सुन्दर होता। वह यह सुनकर दंग रह गई की शिवाजी माहराज उसमें अपनी माँ का रूप देख रहे है। माहराणा प्रताप ने भी जीवन प्रयन्त पराई स्त्री को चाहे वह शत्रु पक्ष की रही हो माँ, बहन बेटी जैसा सम्मान ही दिया। आज के हालात पर नजर डाले तो, शिवाजी, माहराणा, भगतसिंह, सुभाष चन्द्र बोस के देश में जिसको उन्होंने अपना तथा अपनों का बलिदान देकर देश को आजाद कराया था कैसा है उनका हमारा देश। भारत में हर घंटे बलात्कार की औसतन तीन घटनाएं हो रही हैं। राजधानी दिल्ली हो या फिर देश का कोई और कोना, लड़की कहीं भी सुरक्षित नहीं। पुलिस की तफ्तीश इतनी लचर होती है कि 20 में से 19 मामलों में अभियुक्त सुबूत के अभाव में अदालत से बेदाग छूट जाते है। दरिंदगी की जो घटना दिल्ली में हुई है, उसके लिए सिर्फ पुलिस को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। यह सही है कि सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस की है, लेकिन बलात्कार या महिलाओं के खिलाफ होने वाले किसी भी तरह के अपराध में कई दूसरे पक्ष भी बेहद अहम भूमिका निभाते है। इसमें सबसे पहले कठघरे में समाज खड़ा होता है, जहां हमेश महिला की स्थिति दोयम दर्जे की रही है। महिलाओं के प्रति लोगों का रवैया भी इस तरह के मामलों के लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं। दूसरी भूमिका है न्याय प्रणाली की। बार-बार सामने आता है कि पुलिस की तमाम कोशिशें के बावजूद बलात्कार के आरोपी अदालत से बरी हो जाते है। सिर्फ इतना ही नहीं गिरफ्तारी के अगले दिन ही उन्हें जमानत भी मिल जाती है। ऐसे में अपराधियों के हौसले बुलंद हो जाते हैं। न्याय व्यवस्था की यही खामियां अपराधियों को बेपरवाह बनाती है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक बलात्कार पीडि़त लड़की का बयान ही आरोपी को सजा दिलाने के लिए काफी है। बावजूद इसके तरह-तरह के सबूत मांगे जाते है। इन सबूतों को जुटाने में भी पुलिस की सारी मुस्तैदी उस वक्त बेकार हो जाती है, जब उसके पास उपयुक्त सुविधाएं नहीं होती है। बलात्कार के मामले में एक सबूत चाहिए होता है पीडि़त लड़की का डीएनऐ, लेकिन इस तरह की सांइटिफिक लैब ही उपलब्ध नही हो पाती जहां यह टेस्ट किया जा सके। अकेले उत्तर प्रदेश की बात करे तो इतने बड़े राज्य में सिर्फ एक ही ऐसी लैब मौजूद है। इस पर भी जब पुलिस पीडि़त लड़की के बयान पर कार्रवाई आगे बढ़ा रही होती है तो उसके घर वाले दूसरे पक्ष से समझौता कर लेते है या पैसे लेकर चुप हो जाते है। अदालत में लड़की अपना बयान बदल देती है और मुजरिम फिर से आजाद हो जाता है। ऐसे मामलों में पुलिस क्या कर सकती है। सुरक्षा में चूक होते ही पुलिस को कठघरें में खड़ा तो कर दिया जाता है, लेकिन अंदरूनी व्यवस्था के हालात पर कोई बात नहीं करता। 2,28,650 अपराध के मामले 2011 में दर्ज किए गए थे, जिनमें महिलाओं को किसी ने किसी रूप में प्रताडि़त किया गया। 24,200 मामले वर्ष 2011 के दौरान देश भर में सामने आएं, जिनमें महिलाओं को बलात्कार का दंश झेलना पड़ा। 582 बलात्कार के मामले वर्ष 2012 में दिल्ली में दर्ज हुए है। 2012 में सामने आए बलात्कार के 582 मामलों ने पुलिस के इस रिकार्ड और दिल्ली की असुरक्षित छवि के अहसास को और भी पुख्ता कर दिया। 2010 में मणिपुर की एक 30 साल की बीपीओ कर्मी को शराब के नशे में धुत चार आदमियों ने धौला कुआं के नजदीक एक चलती गाड़ी में गैंग रेप किया। 2005 में राजधानी फिर एक वीभत्स हादसे की गवाह बनी। धौला कुआं के पास चलती कार में चार लोगों ने दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक छात्रा का बलात्कार किया। इस साल मायापुरी पुलिस स्टेशन से 100 मीटर की दूरी पर एक चार महीने की गर्भवती महिला का एक सफेद कार में अपहरण कर बलात्कार किया गया। 2003 में सिरी फोर्ट काम्पलेक्स की पार्किग में दो आदमियों ने एक स्विस राजनयिक के साथ उसी की कार में बलात्कार किया। बलात्कार के बाद महिला को मार पीटकर और पैसे लूट कर कुछ किलोमीटर दूर कार समेत फेंक गए। 2002 में 15 नवंबर के दिन बहादुर शाह जफर मार्ग जैसी व्यस्त सड़क पर दिन दहाड़े तीन लोगों ने मौलाना आजाद मेडीकल कालेज की एक छात्रा को खूनी दरवाजे की छत पर ले जाकर बलात्कार किया। घटना पुलिस हेडक्र्वाटर से सिर्फ एक किलोमीटर की दूरी पर हुई। 2001 में मथुरा रोड़ और साउथ दिल्ली के बीच चलने वाली ब्लूलाइन बस में चार आदमियों ने एक 26 साल की महिला का बलात्कार करने के बाद से बस से नीचे फेंक दिया। इस घटना के बाद लोग सड़कों पर आए और उन्होंने जवाब मांगा। पुलिस ने कहा रात में गश्त बढ़ाई जाएगी व बसों की जांच की जाएगी। यह वर्तमान गृह मंत्री के ब्यान से मेल खाता है। हमें प्रण लेना होगा महिलाओं को इज्जत, सुरक्षा व अधिकार देंगे और दिलाएंगे। ”आओ आंगन में अब ऐसा पेड़ लगाएं, पड़ोसी के आगन जिसकी छाया जाए।” |
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